दिल्ली की साकेत कोर्ट में कुतुब मीनार परिसर में पूजा करने की मांग को लेकर सुनवाई चल रही है। इस बीच कुतुब मीनार समेत देश के ऐतिहासिक स्मारकों की देखरेख करने वाली संस्था ने एफिडेविट दाखिल कर इसका विरोध किया है। संस्था ने कहा कि किसी भी स्मारक की स्थिति को बदलना मूल अधिकार के दायरे में नहीं आ सकता। एएसआई ने कहा कि नियमों के मुताबिक कुतुब मीनार के मौजूदा ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। इसके अलावा कुतुब मीनार के किसी भी हिस्से में पूजा का अधिकार नहीं दिया जा सकता। हालांकि सरकारी एजेंसी ने यह भी कहा कि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कुतुब मीनार में बहुत सी चीजें हैं।
एफिडेविट में कहा गया है, ‘किसी भी स्मारक के स्टेटस को बदलकर मूल अधिकार नहीं दिया जा सकता। स्मारकों के संरक्षण के लिए बने AMSAR Act, 1958 के मुताबिक किसी भी स्मारक का स्टेटस बदलना उसके संरक्षण और बचाव के सिद्धांत के खिलाफ है। इस कानून के तहत कोई नई प्रैक्टिस ऐसे स्मारकों में शुरू नहीं की जा सकती, जिससे इसका स्वरूप बदलता हो।’ इससे पहले संस्कृति मंत्रालय की ओर से कहा गया था कि किसी भी नॉन लिविंग प्लेस पर पूजा का अधिकार नहीं दिया जा सकता। इससे पहले दिल्ली के साकेत कोर्ट ने एएसआई को आदेश दिया था कि परिसर में मिलीं भगवान गणेश की दो प्रतिमाओं को अगले आदेश तक हटाया न जाए।
दरअसल कुतुब मीनार परिसार में गणेश जी की दो प्रतिमाएं मिली थीं। 12वीं सदी में बने कुतुब मीनार परिसर को यूनेस्को की ओर से 1993 में वर्ल्ड हेरिटेज साइट का दर्जा दिया गया था। आज भी इस मसले को लेकर साकेत कोर्ट में सुनवाई चल रही है। इस दौरान हिंदू परिसर ने मांग की है कि कुतुब मीनार परिसर में मिली प्रतिमाओं की पूजा का अधिकार दिया जाना चाहिए। इसके अलावा हिंदू पक्ष के वकील ने दावा किया कि कुतुब मीनार को 27 हिंदू और जैन मंदिरों के ऊपर बनवाया गया था। कुतुब मीनार परिसर का भी ज्ञानवापी की ही तर्ज पर सर्वे कराने की मांग हो रही है।