सेवा भारत टाइम्स रिर्पोटर
देहरादून। सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज द्वारा ग्राउंड नंबर 8 निरंकारी चौक बुराड़ी रोड दिल्ली में आयोजित नव वर्ष के अवसर पर विशेष सत्संग समारोह में उपस्थित सभी श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए यह भाव व्यक्त किए की ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति से ही जीवन में वास्तविक भक्ति का आरंभ होता है और इसके ठहराव से जीवन भक्तिमय एवं आनंदित हो जाता है । इस कार्यक्रम का लाभ लेने हेतु दिल्ली एवं एन०सी०आर० सहित अनेकानेक स्थानों से हजारों की संख्या में श्रद्धालु भक्तजन उपस्थित हुए और सभी नव वर्ष के प्रथम दिन अपने सद्गुरु के साकार रूप में दिव्य दर्शन तथा पावन प्रवचनों से स्वयं को आनंदित एवं कृतार्थ किया । सतगुरु माता सुदीक्षा जी ने जीवन में ब्रह्मज्ञान का महत्व बताते हुए फरमाया कि ब्रह्म ज्ञान का अर्थ हर पल निरंकार प्रभु सत्ता की रोशनी में रहना है और यह अवस्था जीवन में तब बन पाती है जब जीवन में इसका ठहराव निरंतर बना रहे तभी वास्तविक रुप से मानव की मुक्ति संभव है । जीवन की सार्थकता यही है कि हम सदैव माया के प्रभाव से स्वयं को बचाते हुए अपने उद्देश्य को सदैव समझे की यह परमात्मा क्या है । और हम इसे जानने हेतु निरंतर प्रयासरत रहें। इस भवसागर संसार में निरंकार एवं माया दोनों का प्रभाव निरंतर बना हुआ है अतः हमें स्वयं को निराकार प्रभुसत्ता से जोड़कर भक्ति करनी है। तथा जीवन में सेवा सिमरन सत्संग को केवल नित्य कर्म के रूप में नहीं,एक चैक लिस्ट के रूप अपनी उपस्थिति को जाहिर करना नहीं अपितु निराकार से वास्तविक रूप में जुड़ते हुए अपना कल्याण करना है। सतगुरु माता जी ने बहुत ही सुंदर उदाहरण देते हुए फरमाया कि जिस प्रकार से एक विश्वविद्यालय में सभी छात्र शिक्षा ग्रहण करने के लिए जाते हैं तथा कुछ छात्र ऐसे होते हैं जिनको ज्ञान समझ नहीं आता तथा उनके संदेह का निवारण करने के लिए वहां पर अध्यापक उपस्थित होते हैं। जो उनकी शंकाओं का समाधान करते हुए उन्हें सही मार्गदर्शन देते हैं जिसके बाद वह छात्र उन शिक्षा से अपने जीवन को सफल बना लेते हैं वहीं दूसरी ओर कुछ छात्र संकोचवश शंकाओं को अपने मन में बिठा लेते हैं। और फिर वहीं शंका नकारात्मक भाव उत्पन्न करती है तथा जिसके प्रभाव से वह मैं में आकर उन संकाओ का निवारण नहीं करते तथा अंततः जीवन में सफल ही नहीं हो पाते इस कथन में सद्गुरु माता जी मूल भाव यही था की केवल ब्रह्मज्ञान लेने मात्र से जीवन में सफलता संभव नहीं है अपितू उसे समझ कर जीवन में उसके ठहराव से ही मानव मात्र का कल्याण संभव है अन्यथा हमारा जीवन ज्ञान की बहुमूल्य रोशनी के होते हुए भी अंधकारमय ही रहता है और हम यह अमूल्य जन्म भ्रम और भुलेखौं में ही व्यतीत कर देते हैं। मुक्ति की वास्तविकता बताते हुए सद्गुरु ने फरमाया की मुक्ति केवल उन्ही संतो को प्राप्त होती है जिन्होंने वास्तविक रूप में ब्रह्म ज्ञान की दिव्यता को समझ लिया और उसे अपने जीवन में अपनाया। इस जीवन की महत्वता और मूल्य तभी है जब इसे वास्तविक रूप में जिया जाए केवल दिखावे के लिए नहीं।
प्रेस रिपोर्ट: उपदेश भारती (मीडिया सहायक)
संत निरंकारी ब्रांच भोगपूर देहरादून उत्तराखंड