केरल व ​तमिलनाडु की तर्ज पर गल्ला विक्रेताओं का मानदेय करें निर्धारित : वर्मा

सस्ता गल्ला विक्रेता, जनपद में 915 दुकानें 01 अक्टूबर से पिथौरागढ़ जनपद भी होगा हड़ताल में शामिल

  • न्यूनतम 30 हजार मासिक मानदेय की मांग। 
  • पुरानी दुकानों को करें ऑनलाइन व्यवस्था से मुक्त। 

अल्मोड़ा रिपोर्टर एसबीटी न्यूज़ उत्तराखंड

अल्मोड़ा। अल्मोड़ा पर्वतीय सरकारी सस्ता गल्ला विक्रेता कल्याण समिति के कुमाऊं क्षेत्र के प्रदेश अध्यक्ष मनोज वर्मा ने कहा कि लंबित मांगों का लेकर पर्वतीय क्षेत्रों के 07 हजार 124 सरकारी सस्ता गल्ला विक्रेता हड़ताल पर चले गये हैं। 01 अक्टूबर से पिथौरागढ़ जनपद भी हड़ताल में शामिल हो जायेगा। इसके बावजूद सरकार कोई अहम फैसला उनके हित में नहीं ले रही है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि केरल व तमिलनाडु की तर्ज पर यदि सरकार गल्ला विक्रेताओं का मानदेय निर्धारित करने सहित सभी मांगें पूरी नहीं करती तो हड़ताल समाप्त नहीं की जायेगी।

मनोज वर्मा यहां नंदादेवी मंदिर के प्रांगण में वरिष्ठ पदाधिकारियों को साथ लेकर मीडियो से मुखातिब हुए। उन्होंने कहा कि गत 19 अगस्त को नौ जनपदों को साथ लेकर पर्वतीय सरकारी सस्ता गल्ला विक्रेता कल्याण समिति का पुर्नगठन किया गया था। उनकी संस्था अब पंजीकृत हो चुकी है। प्रमुख मांगों में केरल व तमिलनाडु राज्यों की तर्ज पर सभी गल्ला विक्रेताओं को कम से कम 30 हजार मासिक मानदेय देने, पुराने समस्त बिलों का भुगतान करने आदि की मांगें प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि वर्तमान में गल्ला विक्रेताओं पर ऑनलाइन व्यवस्था थोप दी गई है। जबकि हकीकत तो यह है कि कई पुराने व बुजुर्ग गल्ला विक्रेता कम्प्यूटर तो दूर एंडरॉयड मोबाइल तक नहीं चला पाते। उनकी मांग यह भी है कि पुराने गल्ला विक्रेताओं को इस ऑनलाइन व्यवस्था से मुक्त रखा जाये।

प्रदेश संयोजक अभय साह ने कहा कि मौजूदा व्यवस्था में पर्वतीय क्षेत्र के गल्ला विक्रेता बहुत परेशान हैं। कई तो केवल 22 राशनकार्ड वालों की दुकानें खुलवा दी गई हैं। जिससे वह कोई लाभ कमाना तो दूर दुकान का किराया तक नहीं दे पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कोरोना काल में दो गल्ला विक्रेताओं की मौत हो गई थी, लेकिन उन्हें आज तक घोषित 10 लाख का मुआवजा नहीं मिल सका है। वहीं दिल्ली व राजस्थान सरकार ने तो 50—50 लाख का मुआवजा दिया है

प्रदेश सलाहकार दिनेश गोयल ने कहा कि सरकार ने इस तरह की व्यवस्था की है कि जिससे साबित होता है कि वह गल्ला विक्रेताओं को ईमानदारी से कार्य ही नहीं करने देना चाह रही है। सालों से गल्ला विक्रेताओं का लाभांश नहीं बढ़ाया गया है। विगत दस सालों में संगठन 500 से अधिक ज्ञापन दे चुका है, लेकिन लगता है कि सरकार ने सभी ज्ञापन रद्दी की टोकरी में डाल दिये हैं। उन्होंने कहा कि गल्ला विक्रेता अब 30 हजार से कम मानदेय में कार्य नहीं करेंगे।

उन्होंने बताया कि विगत कांग्रेस शासनकाल में मानदेय को लेकर एक जीओ जारी हुआ था, लेकिन आज तक उस शासनादेश पर भी अमल नहीं हुआ है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में अल्मोड़ा जनपद में 915 दुकानों में करीब 68 हजार कार्ड धारक हैं, जिनको हड़ताल के चलते राशन उपलब्ध नहीं हो पा रहा है, लेकिन सरकार गल्ला विक्रेताओं के अलावा उपभोक्ताओं की समस्या को भी नहीं देख रही है। प्रेस वार्ता में जिला महामंत्री केसर सिंह खनी व नगर कोषाध्यक्ष विपिन चंद्र तिवारी भी मौजूद थे।

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