रामनगर। 22 अक्टूबर 2025: देश भर में दीपों का पर्व दीपावली पूरे उत्साह और उमंग के साथ मनाया गया है। चारों ओर दीयों की रोशनी, मिठाइयों की मिठास और पटाखों की गूंज माहौल में खुशियां भर देती है, लेकिन इन खुशियों के बीच प्रकृति की एक मूक पीड़ा भी छिपी है। यह पीड़ा उन नन्हें परिंदों को झेलनी पड़ती है, जो इंसानी शोर से डरकर अपने बसेरे छोड़ने को मजबूर हो जाते हैं।
उत्तराखंड जैसे हरे-भरे और जैव विविधता से भरपूर पर्वतीय क्षेत्रों में यह समस्या और भी गंभीर है। नैनीताल, भीमताल, भवाली और आसपास के इलाकों में रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि दीपावली की रात जब पटाखों का शोर आसमान तक गूंजता है तो सामान्य दिनों में घरों या पेड़ों पर दिखने वाले गौरैया, बुलबुल, किंगफिशर, चीर फीजेंट, स्टेपी ईगल और ब्राउन वुड आउल जैसे पक्षी अचानक गायब हो जाते हैं। ये भयभीत परिंदे अपने घोंसले छोड़कर कई किलोमीटर दूर के शांत जंगलों की ओर उड़ जाते हैं, कई तो वापस लौट ही नहीं पाते।
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार पटाखों से निकलने वाली 140 से 150 डेसिबल तक की तेज आवाज़ पक्षियों के लिए बेहद घातक होती है। पक्षियों की श्रवण क्षमता इंसानों की तुलना में कई गुना अधिक होती है, इसलिए यह धमाका उनके लिए असहनीय हो जाता है।वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो लगातार तेज आवाज़ों के कारण पक्षी दिशा-भ्रम का शिकार हो जाते हैं और घबराहट में पेड़ों, इमारतों या बिजली के तारों से टकराकर घायल हो जाते हैं। इस वजह से कई बार उनकी मौत भी हो जाती है। वन्यजीव विशेषज्ञों की मानें तो कई मामलों में तो पटाखों से उत्पन्न धुएं और प्रदूषण के कारण पक्षियों के सांस लेने की क्षमता भी प्रभावित होती है।
नैनीताल और उसके आसपास करीब 700 से अधिक प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं, जिनमें रेड हेडेड वल्चर, ग्रेट बारबेट, ग्रेड स्पॉटेड ईगल, ब्लू विंग्ड मिन्ला और एशियन पैराडाइज फ्लाई कैचर जैसी दुर्लभ प्रजातियां शामिल हैं। स्थानीय पक्षी प्रेमी संजय छिम्वाल बताते हैं कि दीपावली का शोर केवल वयस्क पक्षियों के लिए ही नहीं, बल्कि अंडों में पल रहे भ्रूणों के लिए भी खतरनाक होता है।
यह उनके प्रजनन चक्र को बाधित करता है और प्रवास की दिशा को भी बदल देता है। दीपावली खुशियों का त्योहार है, लेकिन इसे मनाते समय प्रकृति और जीव-जंतुओं का ख्याल रखना भी हमारी जिम्मेदारी है। पटाखों की जगह दीयों और सजावट से उत्सव को रोशन किया जा सकता है। थोड़ी सी संवेदनशीलता न केवल पक्षियों की जान बचा सकती है, बल्कि हमारे पर्यावरण को भी सुरक्षित रख सकती है।