राजधानी से रोजाना निकलने वाले 500 टन कूड़े के निस्तारण की योजना वादों और इरादों में उलझकर रह गई। नतीजतन शीशमबाड़ा सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट में चार लाख टन से अधिक कूड़े का पहाड़ खड़ा हो गया। मामले में नगर निगम और कंपनी की अपनी-अपनी नाराजगियां हैं।
रैमकी इनवॉयरो लि. कंपनी के प्रोजेक्ट हेड अहसान सैफी का कहना है कि उन्होंने खुद ही नगर निगम के साथ काम करने में असमर्थतता जताई है। वजह पूछने पर वह कहते हैं कि निगम ने टेंडर और इसके बाद हुए अनुबंध में जो वादे किए थे, वे पूरे ही नहीं किए। उन्होंने बताया कि कंपनी को कूड़ा ढोने वाले वाहनों के लिए निगम की ओर से तीन करोड़ रुपये की ग्रांट दी जानी थी, लेकिन निगम प्रशासन ने चार साल में वह ग्रांट नहीं दी। नतीजतन कंपनी को खुद करीब 20 करोड़ रुपये खर्च कर वाहन खरीदने पड़े। उन्होंने यह भी कहा कि कंपनी को जिस रेट पर ठेका दिया गया था, उसका रिवीजन हर तीन माह में किया जाना था। आज तक नगर निगम ने रेट में कोई संशोधन नहीं किया। ऐसी तमाम वजहें हैं, जिनकी वजह से कंपनी को काम करने में दिक्कत आ रही थी।
नगर निगम इस पूरे मामले पर अपने रुख पर कायम है। नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. अविनाख खन्ना का कहना है कि टेंडर की जो भी शर्तें थीं, उन्हें कंपनी पूरी नहीं कर पाई। की-परफॉर्मिंग इंडिकेटर (केपीआई) के पैमानों पर कंपनी खरी ही नहीं उतरी। उन्होंने बताया कि कंपनी को तीन चरणों में काम करना था। पहले चरण में सभी मशीनें लगाने का काम पूरा करना था। जब उन्होंने कार्यभार संभाला और शीशमबाड़ा प्लांट में आग की घटना पर वह जांच करने गए तो पता चला कि सभी मशीनें चल ही नहीं रही थीं। उन्होंने बताया कि दूसरे चरण में कंपनी को डोर-टु-डोर कूड़ा कलेक्शन 100 प्रतिशत घरों से करना था, जिसे कंपनी कभी पूरा नहीं कर पाई। शर्तें पूरी न करने की वजह से ही कंपनी हर महीने जो बिल देती थी, उसमें 20 फीसदी कटौती कर दी जाती थी।
रैमकी कंपनी का दावा है कि उसने शहर की स्वच्छता बढ़ाने के लिए पूरा सेटअप लगाया था। कूड़ा निस्तारण का काम भी तेजी से किया गया। इन चार वर्षों में कंपनी पर कम से कम दस बार जुर्माना लगाया गया। पहले से ही कंपनी को भुगतान पूरा नहीं हुआ, ऊपर से जुर्माना भी लादा गया। बावजूद इसके व्यवस्थाएं आज भी जस की तस हैं।