जानिए माँ दुर्गा के नौ स्वरूप  

देहरादून। 18 सितम्बर 2025: संस्थापक एवं संचालक दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आशुतोष महाराज का कहना है कि यूँ तो विश्व भर में अनेकों रूपों में शक्ति की उपासना की जाती है। लेकिन भारत शक्ति उपासना का केन्द्र है। एक मात्र भारत ही ऐसा देश है, जहाँ शक्ति को ’माँ’ कहकर पुकारा जाता है। माँ, जो अतुल्य आनंद एवं मातृत्व का स्त्रोत है, जो सदा अक्षुण्ण, अबाध रूप में बहता है। हमारे आर्ष ग्रन्थों में इसी कारण माँ को अग्रगण्य स्थान प्रदान किया गया। जिस प्रकार लौकिक माँ अपने बालक के विकास के लिए कभी स्नेह की वर्षा करती है, तो कभी क्रोधित होती है। ठीक उसी प्रकार माँ भगवती  जगदम्बिका भी हम मानवों के कल्याण हेतु विविध रूप धारण कर इस धरा पर अवतीर्ण होती है। इसी का एक प्रमाण नवरात्रों के दिनों में भी देखने को मिलता है, जिसमें माँ दुर्गा की नौ रूपों में पूजा होती है। माँ नवदुर्गा इन नौ स्वरूपों में प्रकट होकर हमें अकूत प्रेरणा देती है व भक्ति के साथ जोड़ती है। कैसे? आइए जानते हैं-

शैलपुत्रीः नवरात्रों के प्रथम दिन माँ की शैलपुत्री के रूप में पूजा की जाती है। माँ का यह रूप ’भक्ति में दृढ़ता’ का प्रतीक है। क्योंकि ’शैल’ माने ’पर्वत’ अर्थात जो पर्वत जैसी दृढ़ है, वही शैलपुत्री है।

ब्रह्मचारिणीः इस रूप की पूजा नवरात्रों के दूसरे दिन की जाती है। ’ब्रह्मचारिणी’ अर्थात् जो ब्रह्म में स्थित होकर आचरण करती है। यही प्रेरणा हमें माँ दे रही है कि ब्रह्म में स्थित होकर आचरण करो। मन के गुलाम बनकर वासनाओं के अधीन होकर नहीं! लेकिन अगला प्रश्न यही है कि हम ब्रह्म में स्थित कैसे होंगे? किसी में स्थित होने के लिए सर्वप्रथम उसे जाना जाता है, उसका दर्शन प्राप्त किया जाता है। इसलिए ब्रह्म का साक्षात्कार करना परमावश्यक है। एक तत्त्ववेता ब्रह्मनिष्ठ सद्घ्गुरु ही हमें दिव्य चक्षु प्रदान कर उस प्रकाश स्वरूप परम सत्ता को हमारे भीतर दिखा सकते हैं। जब ऐसा ब्रह्मज्ञान गुरु कृपा से हमें मिलता है, तभी हम ब्रह्म में स्थित होकर आचरण कर पाते हैं।

चन्द्रघण्टाः तीसरे नवरात्रे में माँ के इसी रूप की पूजा होती है। माँ के चंद्रघण्टा स्वरूप में दस भुजाएँ हैं, जो पांच कर्म-इन्द्रियों, पांच ज्ञानेन्द्रियों की प्रतीक हैं। माँ के इस रूप से हमें जितेन्द्रिय होने की शिक्षा मिलती है। जो मानव इन इन्द्रियों के अधीन है, वह सदैव बंधन में जीवन व्यतीत करता है। इसलिए माँ भगवती कहती हैं कि मुमुक्षुओं को देह बन्धन से मुक्ति के लिए मेरे निष्कल, सूक्ष्म, वाणी से परे, अत्यंत निर्मल, निर्गुण, परम ज्योति, इंद्रियातीत स्वरूप का ध्यान करना चाहिए (जो ब्रह्मज्ञान द्वारा ही अंतर्जगत में प्रकट होता है)।

कूष्माण्डाः चौथे नवरात्रे के दिन इस रूप की पूजा होती है। संस्कृत साहित्य के आधार पर इसका अभिप्राय है जो किसी भी बीज व अण्डे में से ऊर्जा को निकाल कर ग्रहण करती है, उसे ’कूष्माण्डा’ कहा जाता है। इस रूप के द्वारा माँ हमारे ध्येय की ओर इशारा करती है कि इस सृष्टि का सार वह परमात्मा है। जिस प्रकार बीज में वृक्ष व अण्डे में जीव विद्यमान है, उसी प्रकार इस सृष्टि के मूल में ऊर्जा समाई है जो परमात्मा का सूक्ष्म स्वरूप है। उस ऊर्जा को जान लेना ही हमारे नर तन का लक्ष्य है।

स्कन्दमाताः पंचम नवरात्र के दिन स्कन्दमाता की पूजा होती है। माँ का यह स्वरूप सात्त्विक शक्ति का प्रतीक है। माँ की गोद में उनका पुत्र स्कन्द है, जिन्हें देवताओं का सेनापति कहा जाता है। हम सभी जानते हैं कि जब तारकासुर के आतंक से देवतागण भयभीत थे, तो उनका भय दूर करने के लिए सात्त्विक शक्ति के रूप में माँ ने उन्हें स्कन्द जैसा पुत्र प्रदान किया था। असुर का अर्थ अंधकार है, तो स्कन्द प्रकाश है। असुर अगर मृत्यु हैं, तो स्कन्द अमृतस्वरूप है। असुर यदि असत्य हैं, तो स्कन्द सत्य है। इस प्रकार माँ यही प्रेरणा देती है कि तुम भी ज्ञानस्वरूप स्कन्द को अपना सेनापति बनाकर जीवन-युद्ध जीत जाओ।

कात्यायनीः माँ के इस रूप की पूजा छठे नवरात्रे में होती है। इसी रूप में माँ ने महिषासुर का मर्दन कर पृथ्वी-वासियों को अभय दान दिया था। जब-जब हमारे भीतर हिंसा, निकृष्टता व पाप का बोलबाला होता है, तो माँ के प्रकटीकरण की परमावश्यकता होती है। माँ हम सभी के अन्दर चेतना स्वरूप में विद्यमान है और ब्रह्मज्ञान द्वारा अपनी इस सुप्त चेतना को जागृत कर लेने से हम भी दुर्गुणों रूपी महिष का नाश कर सकते हैं। यही माँ कात्यायनी की प्रेरणा है।

कालरात्रिः सातवें दिन इनकी पूजा होती है। माँ कालरात्रि का वर्ण काला है। उनके साथ काल का घनिष्ठ संबंध है। वास्तव में, काल क्या है? जो सब पदार्थों का विनाश करता है, वही काल है। जो कालरूप जगत का आधार है- ’कालो ही जगदाधारः’, आश्रय है, वही काली है। वे हमें मृत्यु के भय से मुक्ति प्राप्त करने की प्रेरणा देती हैं। माँ कालरात्रि की पूजा के साथ आज बहुत सी मिथक बातें जुड़ी हुई हैं। अनेक लोग माँ को प्रसन्न करने के लिए भैंसे व बकरे की बलि चढ़ाते हैं। परन्तु यह एक भयंकर व अक्षम्य पाप है। माँ कभी भी अपने भक्तों से इस प्रकार की बलि नहीं चाहती। अपितु हमारे शास्त्रों में विकार रूपी पशुओं की बलि देने को कहा गया है।

महागौरीः महागौरी माँ का आठवें नवरात्रे में पूजन होता है। इस रूप में माँ का वाहन वृषभ है, जिसका भाव धर्म होता है। माँ इस रूप में हमें समझाती हैं कि हमारे जीवन में धर्म की परमावश्यकता है। धर्म ’धृ’ धातु से उद्भूत है, जिसका अर्थ है- धारण करना। उस परमसत्ता को, जो हमारे अंतःकरण में विराजमान है। इसी धर्म को धारण करने से जीवन में प्रखरता व उज्ज्वलता का साम्राज्य स्थापित हो पाता है और यही महागौरी का संदेश है।

सिद्धिदात्रीः नवम नवरात्रे के दिन माँ के इस स्वरूप की पूजा की जाती है। सिद्धिदात्रि अपने नाम से ही यह परिभाषित करती हैं कि वे सिद्धियों को देने वाली हैं। लेकिन हमारे जीवन में माँ इस रूप में तभी प्रकट होती है, जब हम समस्त विद्याओं की सारभूत ब्रह्मविद्या को धारण कर लेते हैं। माँ स्वयं कहती हैं कि जो लोग मेरी वास्तविक भक्ति को जान कर मेरी आराधना करते हैं, वे मुझमें और मैं उनमें स्थित रहती हूँ। वे मेरे द्वारा प्रदान की गई सिद्धियों को स्वतः ही प्राप्त कर लेते हैं। अतः भक्तजनों, माँ अपने नव रूपों में समग्र मानवजाति को यही संदेश देती हैं कि शुद्ध अंतःकरण वाले मोक्षार्थी साधक को आत्मज्ञान की प्राप्ति में निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए।

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