उत्तराखंड राज्य स्थापना के 21 साल: तमाम योजनाएं बनीं लेकिन नहीं रुकी पलायन की गति, आज भी जस के तस हालात

नहीं रुक रहा पलायन

राज्य में पलायन का दौर अब भी जारी है। गत वर्ष कोरोनाकाल में तमाम प्रवासी लौटकर अपने गांव पहुंचे। कहा जा रहा था कि अब इनमें से अधिकतर लोग वापस नहीं जाएंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।

पलायन का दंश झेल रहे उत्तराखंड में वर्ष 2017 में भाजपा की सरकार बनने के बाद पलायन के कारणों और इसकी रोकथाम के लिए सुझाव देने के लिए ग्राम्य विकास विभाग के अंतर्गत पलायन आयोग का गठन किया गया। आयोग ने इस संबंध में प्रदेश के सभी गांवों का सर्वे कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी। जिसमें मुख्य रूप पलायन के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार प्रमुख कारण उबरकर सामने आए।

सरकार ने इन कारकों को दूर करने के लिए अपने स्तर पर कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन स्थितियां आज भी नहीं बदली हैं। राज्य में पलायन का दौर अब भी जारी है। गत वर्ष कोरोनाकाल में तमाम प्रवासी लौटकर अपने गांव पहुंचे। कहा जा रहा था कि अब इनमें से अधिकतर लोग वापस नहीं जाएंगे, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।

रोजगार की कमी के कारण इनमें से अधिकतर लोग वापस महानगरों का रुख कर गए हैं। अब उत्तराखंड ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग को संवैधानिक संस्था बनाने की तैयारी है। पिछले दिनों ग्राम्य विकास मंत्री स्वामी यतीश्वरानंद ने इस सिलसिले में प्रस्ताव तैयार करने के निर्देश विभागीय अधिकारियों को दिए हैं।

मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की

प्रदेश सरकार ने अब पलायन की रोकथाम के लिए मुख्यमंत्री पलायन रोकथाम योजना शुरू की है। इसके तहत राज्य के प्रभावित कुल 474 गांवों में बेरोजगार युवाओं और गांवों में वापस लौटे युवाओं को स्वरोजगार उपलब्ध कराने के लिए प्रथम चरण में 2020-21 में कुल 18 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की है।

32 लाख लोग अपना घर छोड़ शहरों में बसे 

पलायन आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड से करीब 60 प्रतिशत आबादी यानी 32 लाख लोग अपना घर छोड़ चुके हैं। पलायन आयोग की रिपोर्ट कहती है कि 2018 में उत्तराखंड के 1,700 गांव भुतहा हो चुके हैं, जबकि करीब एक हजार गांव ऐसे हैं, जहां सौ से कम लोग बचे हैं। कुल मिलाकर 3900 गांवों से पलायन हुआ है।

जिलेवार रिपोर्ट तैयार कर रहा पलायन आयोग

अब पलायन आयोग जिलेवार सर्वे कर पलायन की रोकथाम के लिए रिपोर्ट तैयार करने में जुटा है। अब तक नौ जिलों की रिपोर्ट सरकार को सौंपी जा चुकी है। इसके साथ ही गांवों की आर्थिकी सशक्त बनाने के लिए भी आयोग सरकार को अपनी संस्तुतियां दे चुका है।

बदल रहा राज्य का राजनीतिक भूगोल 

गैर लाभकारी संगठन इंटीग्रेटेड माउंटेन इनीशिएटिव (आईएमआई) की ओर से जारी स्टेट ऑफ द हिमालय फार्मर्स एंड फार्मिंग रिपोर्ट के अनुसार राज्य में जिस गति से पलायन हो रहा है, उससे आने वाले समय में उत्तराखंड का राजनीतिक भूगोल बदल सकता है। पलायन के चलते राज्य की विधानसभा और लोकसभा क्षेत्रों का दायरा नए सिरे से निर्धारित करना पड़ सकता

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