Uttarakhand Assembly Monsoon Session 2021: 13 District 13 Big Issue In State To Raise In Assembly – उत्तराखंड विधानसभा सत्र: विधायक जी सुनिए, ये हैं 13 जिलों के 13 मुख्य मुद्दे, पढ़ें खास रिपोर्ट… 

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उत्तराखंड विधानसभा का मानसून सत्र जारी है। हर जिले में कोई न कोई समस्या ऐसी है जो लंबे समय से स्थानीय लोगों के अलावा बाहर से आने वालों के लिए भी नासूर बनी हुई है। उत्तराखंड में आम आदमी की अपेक्षा है कि मानसून सत्र में विधायक अपने जिले की प्रमुख समस्याओं को विधानसभा में दमदारी से उठाएं। लेकिन ऐसा तब होगा जब सदन में सार्थक चर्चा होगी। बहस का माहौल बनेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो जन आकांक्षाओं की उपेक्षा होगी। 

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ये हैं 13 जिलों के 13 मुद्दे

देहरादून: ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त नहीं की तो पैदल चलना भी दूभर

एक अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार अगर इसी गति से दून की सड़कों पर यातायात का दबाव बढ़ता रहा और सड़कों का विस्तार व वैकल्पिक-नई सड़कों का निर्माण नहीं हुआ तो 2025 तक शहर में पैदल चलने में भी दिक्कत होने लगेगी। यही नहीं, ट्रैफिक पुलिस भी इस समस्या को लगातार विकराल होते देख रही है। शहर के लिए इतना अहम मुद्दा होने के बावजूद यह विधानसभा में चर्चा का विषय नहीं बन पाया है। यह स्थिति तब है जब दून शहर में छह और जिले में 10 विधायक (ऋषिकेश से विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल विधायक हैं) हैं।

हरिद्वार: धर्मनगरी में पार्किंग की समस्या पर दें ध्यान

विश्व प्रसिद्ध धार्मिक नगरी में आबादी के साथ वाहनों का दबाव लगातार बढ़ रहा है। पर्व स्नान पर हरिद्वार की सड़कों पर वाहन रेंगते हैं। वाहनों को खड़ा करने के लिए पार्किंग नहीं मिलती है। हरकी पैड़ी के नजदीक सीसीआर टॉवर के सामने पंडित दीन दयाल उपाध्याय पार्किंग है। पार्किंग सामान्य दिनों में ही फुल रहती है। हरकी पैड़ी पहुंचने वाले श्रद्धालु अपने वाहनों को पार्किंग में खड़े करते हैं। पर्व स्नान अथवा मेलों पर भीड़ उमड़ने से पार्किंग में जगह नहीं मिलती है और वाहन सड़कों के किनारे खड़े होते हैं। लोगों को जाम से जूझना पड़ता है। हरिद्वार में रिंग रोड के साथ मल्टीस्टोरी पार्किंग की जरूरत है।

चमोली :  जंगली जानवरों से हो रही परेशानी का इलाज ढूंढें 

चमोली जनपद में जंगली जानवरों द्वारा फसलों को नष्ट करना लोगों के लिए बड़ी समस्या बन चुका है। लोग कड़ी मेहनत से फसल तैयार करते हैं, लेकिन बंदर, लंगूर, जंगली सुअर फसलों को नष्ट कर देते हैं, जिससे काश्तकारों का खेती से मोह भंग होता जा रहा है। ग्रामीण कई बार जंगली जानवरों से निजात दिलाने की मांग कर चुके हैं, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो रही है। उद्यान विभाग की ओर से फसलों को बचाने के लिए चेन लिंक फेंसिंग (तारों से खेतों की घेरबाड़) के अलावा कई तरह के प्रयोग किए गए, लेकिन कोई भी योजना सफल साबित नहीं हुई है।

नई टिहरी : बस अड्डे और पार्किंग की दुश्वारी विधानसभा में उठे 

टिहरी जिले में बस अड्डा और पार्किंग सुविधा का अभाव बना हुआ है। जिला मुख्यालय नई टिहरी को छोड़कर घनसाली, चमियाला, लंबगांव, प्रतापनगर, चंबा, नरेंद्रनगर, थत्यूड़, धनोल्टी, कैंटीफाल, देवप्रयाग और कीर्तिनगर में कहीं भी बस अड्डे की सुविधा नहीं है। बस अड्डा और पार्किंग न होने से प्रसिद्ध पर्यटक स्थल धनोल्टी, कैंटीफाल, देवप्रयाग, कीर्तिनगर, घनसाली, लंबगांव और चंबा बाजार में हर दिन लोगों को जाम की समस्या से जूझना पड़ता है। पर्व, त्योहार के दिन और चारधाम यात्रा सीजन के दौरान जाम की समस्या विकट हो जाती है।

पौड़ी: आयुक्त व डीआईजी के मंडल मुख्यालय में न बैठने का मुद्दा उठाएंगे क्या

गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौड़ी में गढ़वाल मंडल आयुक्त, अपर आयुक्त व डीआईजी के न बैठने को लेकर हमेशा से ही क्षेत्रीय जनता में आक्रोश रहा है, लेकिन सरकार ने कभी भी मामले को गंभीरता से नहीं लिया है। गढ़वाल मंडल मुख्यालय पौड़ी का गठन एक जनवरी 1969 में हुआ था। उत्तर प्रदेश के दौर तक लगातार मंडल आयुक्त पौड़ी मुख्यालय में ही बैठते थे। राज्य गठन के बाद पौड़ी की उपेक्षा शुरू हुई। अभी तक मंडल में 33 आयुक्त रह चुके हैं। राज्य गठन के बाद पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार आयुक्त रहते हुए मुख्यालय पौड़ी में बैठते थे, लेकिन इसके बाद से अफसर देहरादून में ही बैठते हैं।

रुद्रप्रयाग : पेयजल संकट एक तिहाई आबादी

अलकनंदा और मंदाकिनी के संगम पर बसे रुद्रप्रयाग समेत जिले की 35 फीसदी से अधिक आबादी पेयजल संकट से जूझ रही है। साथ ही करोड़ों की पेयजल योजनाएं वर्षों बाद भी नहीं बन पाई हैं। इस कारण लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र को पुनाड़ गदेरा से पेयजल सप्लाई हो रही है लेकिन निर्माण के बाद से पुनर्गठन नहीं हो पाया है। इस कारण 20 हजार आबादी को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं, हल्की बारिश में योजना से दूषित पानी की सप्लाई होना आम बात है। वहीं, भरदार, सिलगढ़, तल्लानागपुर, बच्छणस्यूं, धनपुर, रानीगढ़ समेत ऊखीमठ और गुप्तकाशी के 35 फीसदी गांवों को राज्य निर्माण के 21 वर्ष बाद भी पर्याप्त पानी नहीं मिल पाया है। वर्ष 2006/07 में स्वीकृत जवाड़ी-रौंठिया पेयजल योजना 22 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी नहीं बन पाई है।

उत्तरकाशी: तिलोथ पुल निर्माण व यमुनोत्री जिला बनाने की मांग

वर्ष 2012 की आपदा में ध्वस्त तिलोथ पुल अभी तक नहीं बन पाया है। तिलोथ पुल चारधाम यात्रा के लिए काफी महत्वपूर्ण है। यह उत्तरकाशी से केदारनाथ मार्ग को भी जोड़ता है। पुल निर्माण न होने से केदारनाथ जाने वाले वाहनों को चार किमी का अतिरिक्त सफर करना पड़ता है। साथ अव्यवस्था भी होती  है। तिलोथ पुल का निर्माण कार्य वर्ष 2015 में शुुुरू हुआ था, लेकिन छह साल में इसके पिलर तक नहीं बन पाए हैं। पुल निर्माण न होने से तिलोथ सहित बाड़ागड्डी पट्टी के मांडो, जसपुर, थलन, मानपुर, धनपुर, किशनपुर, अलेथ आदि गांवों को जनपद मुख्यालय तक पहुंचने के लिए बड़ेथी-तेखला और मनेरा बाईपास होते हुए आना पड़ता है। प्रधान संगठन के प्रदेश महामंत्री प्रताप सिंह रावत ने कहा कि तिलोथ पुल निर्माण मामला विधानसभा सत्र में उठाया जाना चाहिए।

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