भारत के हृदय रोगियों की पहुँच रोटबलेशन जैसी अत्याधुनिक तकनीकों तक

अथेरेक्टॉमी की सहायता से अधिकांश रोगियों को बाईपास सर्जरी से बचा सकते हैं  : डॉ सलिल गर्ग

देहरादून। पिछले 2 दशकों में भारत में हृदय रोगों का प्रचलन बढ़ा है। श्री महंत इंदिरेश अस्पताल के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ सलिल गर्ग ने हृदय स्वास्थ्य को प्राथमिकता देने और रोगियों को आज देश में उनके लिए उपलब्ध नवीनतम कार्डियक केयर प्रौद्योगिकियों और उन्नत तकनीकों के बारे में जागरूक रेहने पर जोर दिया। दिल की धमनी के रोग से ग्रस्त अनेक रोगियों में, अत्यधिक कैल्शिफायड कोरोनरी आर्टरी ब्लॉक्स होते हैं। हालांकि अत्याधुनिक तकनीक के बल पर इनमें से कुछ रोगी बायपास सर्जरी करवा सकते हैं, लेकिन विशेष कर अधिक उम्र के रोगियों में रुग्णता काफी अधिक होती है और इससे उन्हें ठीक होने में काफी समय लग जाता है।

अधिकांश रोगी खराब सामान्य स्थिति, कमजोर हड्डियों तथा दूसरी अन्य रुग्णताओं जैसे खराब फेफड़े के कारण, सर्जरी के लिए उपयुक्त नहीं रहते हैं। ऐसे रोगियों के लिए रोटेशनल अथेरेक्टॉमी या सामान्य शब्दों में कहा जाए तो ‘कैल्शियम को काटना’ बेहद फायदेमंद साबित हो सकता है। इस तकनीक के लाभ पर प्रकाश डालते हुए डॉ गर्ग कहते हैं, “ हमने अपने प्रैक्टिस के दौरान यह आजमा कर देखा है कि रोटेशनल अथेरेक्टॉमी की सहायता से हम, अधिकांश रोगियों को बाईपास सर्जरी से बचा सकते हैं।

अथेरेक्टॉमी में प्रयुक्त होने वाले रोटाब्लेशन उपकरण में हीरे के लाखों क्रिस्टलों से युक्त एक बीजकोश(बर्र) रहता है। यह बर्र प्रति मिनट 150,000 से 200,000 बार परिक्रमण करता है और कैल्शियम को ठीक उसी प्रकार काट देता है, जिस प्रकार हीरा शीशे को काटता है। कैल्शियम को एक बार हटा देने के उपरांत, स्टेंटिंग की प्रक्रिया के उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त होते हैं। हृदय की धमनी की रुकावटों का ईलाज करने वाली तकनीकों में नई प्रगति के बाद, ड्रग इल्यूटिंग स्टेंट्स (डी.ई.एस.) का उपयोग करने की सलाह दी जाती है, जिनका अध्ययन रोगियों बड़े परिपेक्ष्य में अनेक देशों के द्वारा अच्छी तरह से किया जाता है और इन रोगियों के क्लीकल आँकड़े काफी अधिक संख्या में मौजूद हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *